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चुनावों में चेहरे पर भारी पड़ रही रेवड़ी: दिल्ली में पहली बार एक ही राह पर सियासी दल

8 months ago
Written By: Admin

आशुतोष झा, नई दिल्ली। दिल्ली चुनाव में मुख्य मुद्दा रेवड़ी है यह तो स्पष्ट है। किसी भी दल को सत्ता तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका इसी से तय होगी कि जनता को कौन यह विश्वास दिला सकता है कि वही सौ फीसद रेवड़ी लाभार्थी को दे सकता है।

 

यही कारण है कि हर पार्टी चरणों में रेवड़ियों की घोषणा कर रही है ताकि इसकी याद ताजा रहे। हालांकि, इस बीच एक सवाल यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री चेहरे की महत्ता धीरे-धीरे चुनाव में कम होती जा रही है। चुनाव दर चुनाव जो अनुभव हो रहे हैं उसमें इसे नकारा नहीं जा सकता है कि चेहरे की महत्ता परिस्थिति के अनुरूप बदलती है। जब रेवड़ी संस्कृति हावी होने लगे तो मुद्दा के रूप में चेहरा फीका पड़ने लगता है।

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राष्ट्रीय स्तर की बात की जाए तो 2014 से लेकर अब तक चेहरे का दबदबा दिखा। 2014 लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी का सीधा मुकाबला था। उसके बाद के चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के सामने विपक्ष से किसी चेहरे को सामने रखने की कोशिश ही नहीं हुई। यह चेहरे का ही असर था कि 2024 में विपक्ष की ओर से रेवड़ी की बरसात होने के बावजूद भाजपा सहयोगी दलों के साथ फिर से बहुमत में आ गई। अकेले भाजपा बहुमत से नीचे रह गई।

 

गुजरात से लेकर केंद्र तक मोदी युग में यह पहली बार हुआ। साफ है कि रेवड़ी की आंधी बहुत ताकतवर होती है। अगर दिल्ली की बात हो तो 2013 से अब तक जो तीन विधानसभा चुनाव हुए हैं उसमें आम आदमी पार्टी के लिए अरविंद केजरीवाल का कद पार्टी से बड़ा दिखा। उनका विधायक वैसे ही जीतता रहा जिस तरह केंद्र में भाजपा के सांसद मोदी के नाम से जीतते रहे।

 

कांग्रेस ने भी किया प्रयोग

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